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क्या सुनाएं अपनी दास्तां
जब हर कदम ठोकर मिली
जिस पर मेरा विश्वास था
उससे भी मायूसी मिली ।
एक दौर ऐसा था जब
उम्मीद से लबरेज था
आज उस उम्मीद की किर्ची
आंखों में गड़ी ।
मसीहा हर इंसान का बस एक है
उसी से जुड़ी जीवन की घटनाएं अनेक हैं
कब कहां किस हालात में गुजरेगा पल
उस पर नहीं बस किसी का
किस्मत का खेल विशेष है ।
जो मिला जैसा मिला
उसमें तकल्लुफ ना करो
कुदरत का जो भी फैसला
उस पर शिकायत ना करो ।।
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