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क्या सुनाएं अपनी दास्तां
जब हर कदम ठोकर मिली
जिस पर मेरा विश्वास था
उससे भी मायूसी मिली ।
एक दौर ऐसा था जब
उम्मीद से लबरेज था
आज उस उम्मीद की किर्ची
आंखों में गड़ी ।
मसीहा हर इंसान का बस एक है No posts
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