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दारू जो पी लिया सारे गम भुला दिया,

ना खुद में होश है ना जमाने की फिकर,

मदहोश यूं चलता रहा अपने धुन में इधर उधर,

कहते हैं लोग मुझको शराबी बन गया

घर परिवार छोड़ निकम्मा हो गया ,

दारू से मेरी यारी जीवन से भी प्यारी

चुभते हुए खयालों को जेहन में ना आने दिया,

दारू जो पी लिया सारे गम भुला दिया ।

ये बोतल भरी शराब को ना कहे कोई खराब

ये वो दवा है जो गले से उतर जाए तो

रिसते नसूरों पर मलहम का इलाज,

इसमें ही डूब कर मैं जीता हूं बार बार,

ये अंगूरी पानी नहीं अमृत रसप्रिया,

दारू जो पी लिया सारे गम भुला दिया।।

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