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इन आंसुओं की बस्ती में दर्द के झरने फूटे
ये पानी नहीं किसी मजलूम की आंखों के आंसू
इनमें दर्द भी है सिसकते अरमानों का गुबार
ये बस्ती हैं जहां दर्द का दरिया है, ये आंखे हैं ,
सिसकती आंखें ।
किसी के सपनों के ढहते इस महल को
गौर से देखो,
इनमें अरमानों की चिताओं के शोले नजर आएंगे
इन आंसुओं के बहते झरने से
इन दहकती ज्वाला में इन आंसुओं के छींटे
दिख जायेंगे ।।
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