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इंसानों में समय का बदलाव आया है
नम्रता नहीं सबमें आक्रोश का साया है,
बात बात पर विवाद और उसका प्रतिकार
इंसानियत को करती तार तार
ये कैसा वहशीपन की छाया है,
इंसानों में समय का बदलाव आया है ।
अपने अपने व्यक्तिगत उलझनों में उलझा
इंसान,
खोते जा रहा अपनी खुद की पहचान
प्यार मोहब्बत भाईचारा की परिणति
नफरत और आक्रोश में बदल आया है
इंसानों में समय का बदलाव आया है ।
नम्रता नहीं सबमें आक्रोश का साया है ।।
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