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अच्छा तो हम चलते हैं
कहते हैं हमारे देश के धन कुबेर
लाखों करोड़ों बैंक का कर्ज लेकर
विदेशों में ऐश कर रहे देश के भगोड़े चोर,
सत्ता प्रशासन सुप्त बस कर रहा इंतजार
कानून चुप खड़ा है बैंक भी लाचार
जब आम अवाम की बात हो तो बैंक
जप्त कर लेता है कारोबार,
दौलतमंद के ठिकाने पर हाथ जोड़े हैं लाचार ,
ये कैसी व्यवस्था है जहां गरीब ही गुनहगार
दौलतमंद के लिए सभी सुविधाओं का अंबार
राजनेता हों या व्यापारी करते हैं कालाबाजारी
आम अवाम तो केवल दो रोटी की अधिकारी
पांच किलो मुफ्त राशन ही उसकी
जीविका की लाचारी ।
अमीरी विदेशी धरती से देती है संदेश
याद हमें करते रहना भाई हम यही कहते हैं
आप सब खुश रहो ! अच्छा तो हम चलते हैं ।।
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