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इक महज़ उसकी, इबादत को...
छाप दी हमने, अपनी इबारत को...
उसकी बे-मुरव्वती का, आलम तो देखो यारों...
आज तक पढ़ा नहीं उसने, हमारी लिखावट को...
छाप दी हमने, अपनी इबारत को...
उसकी बे-मुरव्वती का, आलम तो देखो यारों...
आज तक पढ़ा नहीं उसने, हमारी लिखावट को...
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