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कविता
मन विमोहन नगर की ये संवेदिता।
गुनगुनाती है जीवन की गोपन कथा।
चंद शब्दों व छंदों का आश्रय लिए।
भाव अविरल है उन्मुक्त सी "कविता"।
एक सागर सा गागर है, शीतल सृजन।
है कभी वह अगन जिससे होती ज्वलन।
व्यंग्य भी है, खुशी, वेदना भी भरे।
प्रेरणा भी हो तुम काव्य कोटिश नमन।
इस द्रवित से हृदय के रुधिर की व्यथा।
मन विमोहन नगर की ये संवेदिता।
गुनगुनाती है जीवन की गोपन कथा।
चंद शब्दों व छंदों का आश्रय लिए।
भाव अविरल है उन्मुक्त सी "कविता"।
एक सागर सा गागर है, शीतल सृजन।
है कभी वह अगन जिससे होती ज्वलन।
व्यंग्य भी है, खुशी, वेदना भी भरे।
प्रेरणा भी हो तुम काव्य कोटिश नमन।
इस द्रवित से हृदय के रुधिर की व्यथा।
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