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कविता
मन विमोहन नगर की ये संवेदिता।
गुनगुनाती है जीवन की गोपन कथा।
चंद शब्दों व छंदों का आश्रय लिए।
भाव अविरल है उन्मुक्त सी "कविता"।
एक सागर सा गागर है, शीतल सृजन।
है कभी वह अगन जिससे होती ज्वलन।
व्यंग्य भी है, खुशी, वेदना भी भरे।
प्रेरणा भी हो तुम काव्य कोटिश नमन।
इस द्रवित से हृदय के रुधिर की व्यथा।
हम पिरोते हैं रस, छंद, गति की दिशा।
मन तरंगों की अनुभूति पावन करें।
अंशुमाली सा किरणें बिखेरे सदा।
प्रेम की है, वशीभूत जगती सभी।
भावना भाव निश्छल, विरूपण
कही।
भाव कविता समेटे भंवर जाल से।
स्नेह व्याकुल नयन काव्य रचते अभी।
"संवेदिता"
मन विमोहन नगर की ये संवेदिता।
गुनगुनाती है जीवन की गोपन कथा।
चंद शब्दों व छंदों का आश्रय लिए।
भाव अविरल है उन्मुक्त सी "कविता"।
एक सागर सा गागर है, शीतल सृजन।
है कभी वह अगन जिससे होती ज्वलन।
व्यंग्य भी है, खुशी, वेदना भी भरे।
प्रेरणा भी हो तुम काव्य कोटिश नमन।
इस द्रवित से हृदय के रुधिर की व्यथा।
हम पिरोते हैं रस, छंद, गति की दिशा।
मन तरंगों की अनुभूति पावन करें।
अंशुमाली सा किरणें बिखेरे सदा।
प्रेम की है, वशीभूत जगती सभी।
भावना भाव निश्छल, विरूपण
कही।
भाव कविता समेटे भंवर जाल से।
स्नेह व्याकुल नयन काव्य रचते अभी।
"संवेदिता"
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