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रिक्तता ही जीवन का सार है
रिक्तता ही जीवन का आधार है
रिक्तता से निर्माण है
रिक्तता से निर्वाण है
हम जीवन पर्यंत इसी रिक्तता को
भर लेने की अभिलाषा लिए
अक्सर बांध लिया करते है
अपने आप को अनंत
अभिलाषाओं के अंतरजाल में..
और उन अभिलाषाओं को पूर्ण
कर पाने की असीमित अपेक्षाओं में..
बांध लेते हैं अपने आप को
उन अपेक्षाओं के साथ जुड़ी
गहरी संवेदनाओं में ..
पूर्ण करना चाहते हैं
अपने मन की हर रिक्तता..
फिर एक दिन अकस्मात
टूट जाते हैं सारे बंधन
भौतिक.. अभौतिक..
छूट जाती है सारी अभिलाषाएं
पूर्ण ..अपूर्ण..
खत्म हो जाती हैं सारी संवेदनाएं
गहरी.. हल्की..
रह जाती है बस..रिक्तता
कभी ना भर पाने वाली ..रिक्तता
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