
Share0 Bookmarks 38 Reads0 Likes
खोजता फिरा बाहर जिसे
वो अंदर तेरे रहा छुपा
नादानियों के तहत अपनी
तू कभी ना उसे ढूंढ सका
उम्र बीती ज्यों ज्यों
इच्छाओं का लोभ बढ़ता गया
सुकून पाने की आस में
उलझनों के दलदल में
तू हरपल धसता गया
वक्त अपनी चाल से
बेधड़क चलता गया
ज़िंदगी जीने की
जद्दोजहद में
उम्मीदों का सूरज
हर रोज़ ढलता गया
✍️✍️
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments