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तसल्ली कहाँ होती है दिल को
जब तक मुकम्मल ना हो
ये तम्मनायें ही तो हैं
जो बेज़ार ज़िंदगी में
जीने की चाह बढ़ाती हैं
क़रार कहाँ होता है दिल को
जब तक मुसलसल ना हो
ये शिद्दत ए एहसास
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तसल्ली कहाँ होती है दिल को
जब तक मुकम्मल ना हो
ये तम्मनायें ही तो हैं
जो बेज़ार ज़िंदगी में
जीने की चाह बढ़ाती हैं
क़रार कहाँ होता है दिल को
जब तक मुसलसल ना हो
ये शिद्दत ए एहसास
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