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खोल बैठूं जो शिकायतों
का पिटारा किसी रोज़,,
गुम हो जायेंगे जनाब
यहां सबके होश
मैं सही तू गलत का शुरू
हो जाएगा सिलसिला,,
उफान पर आ जाएगा
दबे जज़्बातों का जलजला
मानेगा न कोई
अपने करे हुए कारनामें,,
बेवजह ही भड़क
उठेगें हर तरफ़ हंगामे
जी हां ऐसा ही है
ये रिश्तों का झोल,,
ख़ुद पर बात आते ही
यहां बदल जाते रोल!!
✍️✍️
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