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तवज्जो देते देते थकने लगे हैं
क़दम कोशिशों के अब सिमटने लगे हैं
बंदिशों की बैड़ीयों को तोड़ने लगें हैं
कदमों के हौसले अब दौड़ने लगें है
दूजों की नज़रों में अखरने लगें हैं
ख़ुद ही ख़ुद से अब मिलने लगें हैं
सुकून की तलब में भटकने लगें हैं
राब्ता ख़ुद से अब हम जोड़ने लगें हैं
राब्ता ख़ुद से अब हम जोड़ने लगें हैं
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