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साथ देती हैं परछाइयाँ
लोग छोड़ जाते हैं
चले जाएं जो इक दफा
फिर वो वापस कहाँ आते हैं
साथ चलती हैं साँसें
रिश्ते कब साथ निभाते हैं
मतलब की हो तो सब ठीक
बेमतलब कहाँ पास आते हैं
साथ रहती हैं खामोशियाँ
लफ़्ज़ बिखर जाते हैं
बात जो न हो मन की
तो अल्फाज़ भी मुकर जाते हैं
✍️✍️
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