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लाहासिल हसरतों का
बोझ उठाए है
दिल है की हरपल
अपनी टांग अड़ाए है
सुने है न किसी की
न किसी को बताए है
राज़ जाने कितने
इसने भीतर समाएं है
लबों पर इसने अपने
ताले लगाए हैं
पूछे
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लाहासिल हसरतों का
बोझ उठाए है
दिल है की हरपल
अपनी टांग अड़ाए है
सुने है न किसी की
न किसी को बताए है
राज़ जाने कितने
इसने भीतर समाएं है
लबों पर इसने अपने
ताले लगाए हैं
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