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सच्चा हर एक इल्ज़ाम हो
ये ज़रूरी तो नहीं
अनचाहे रिश्तों को निभाना
कोई मज़बूरी तो नहीं
जज़्बात हर दफा बदनाम हो
ये ज़रूरी तो नहीं
एहसास हर किसी के गुलाम हो
ये कोई मज़बूरी तो नहीं
लबों पर हरदम सजी मुस्कान हो
ये ज़रूरी तो नहीं
दिल में छिपा हुआ राज़ सरेआम हो
ये कोई मज़बूरी तो नहीं
ये कोई मज़बूरी तो नहीं
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