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जब तक चुप रहे
तो सबसे अच्छे थे
आज जो बोल दिया
तो हमसा ख़राब नहीं
उठाई जो आवाज़ ज़रा
तो सवाल सारे बिदग गए
जवाबों की तह के भीतर
ख़ुद बखुद खिसक गए
हुए ख़ुद के साथ खड़े तो
सहारों का भ्रम दूर हुआ
दिखावों के भेस में
अपनों का नाटक
चकनाचूर हुआ
✍️✍️
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