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बस एक लम्हें के चक्कर में
कितने पल क़ुर्बान हुए
कुछ हकीकतों के फेर में
कितने ख़्वाब बेज़ुबान हुए
नफरतों के घने साए में
खुशी के कितने मोती तमाम हुए
चंद गलतफहमियों के फेर में
कितने हसीन पल बेनाम हुए
रुक रुक कर चलते चलते
हम ना जाने कब गुमनाम हुए
जमा किए थे जो चंद सिक्के
मुस्कुराहटों के कभी वो ना
जाने कब और कैसे नीलाम हुए
✍️✍️
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