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दिन ढले कई
रातें काफ़ी गुज़र गईं
ढोते ढोते ज़िम्मेदारियाँ
नादानियाँ न जाने किधर गई
बीते पल कईं
लम्हें सारे गुज़र गए
हालातों के साए में
हम थोड़ा बदल गए
मंजिलों को पाते पाते
ख़ुद को कहीं खो दिया
हसरतों को देख टूटता
दिल भी आख़िर रो दिया
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