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कभी यूं भी
खामोशियों से
रूबरू हुए हम
लब रहे मौन
आँखें हुई नम
न जाने कौन सी यादें
न जाने कितने हैं गम
ज़्यादा सी उदासियां
मुस्कुराहटें हैं कम
बीत रही ज़िंदगी
खर्च हो रहे हम
गुमशुदा हैं ख्वाहिशें
हकीकतों में छिड़ी जंग
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