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हर वक्त चुप होना भी मुमकिन नहीं
कभी कभी तो जज़्बात भी
बगावत पर उतर आते हैं
एहसासों को ज़ब्त करते करते
भावनाओं के श्वास ही निकल जाते हैं
हर वक्त सहना भी मुमकिन नहीं
कभी कभी तो तर्क भी
बगावत प
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