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अपने को ज़्यादा औरों
को कम समझते हैं
अजीब हैं लोग जो सच
को भी वहम समझते हैं
चुप्पी को नासमझी और
लफ़्ज़ों को फ़न समझते हैं
अजीब ह
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अपने को ज़्यादा औरों
को कम समझते हैं
अजीब हैं लोग जो सच
को भी वहम समझते हैं
चुप्पी को नासमझी और
लफ़्ज़ों को फ़न समझते हैं
अजीब ह
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