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हमे लगता था की ये चमकती आँखें
जज़्बा और जूनून ढूंढ़ती है,
पर चार दीवारी में बैठकर लगा
की ये थकी, बोझल आँखें,
बस पल दो पल का सुकून ढूंढ़ती है |
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हमे लगता था की ये चमकती आँखें
जज़्बा और जूनून ढूंढ़ती है,
पर चार दीवारी में बैठकर लगा
की ये थकी, बोझल आँखें,
बस पल दो पल का सुकून ढूंढ़ती है |
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