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ख्वाहीशें कुछ ऐसी जो पूरी न हुई
मैं तकदीर का न हुआ तकदीर मेरी ना हुई
यह किस अनजान की जी रहा हूं ज़िंदगी
जिसका मैं न हुआ उसकी हस्ती मेरी ना हुई।
चाहत मिली नही वोह रूठी हुई
मैं प्यार का न हुआ प्यारी मेरी ना हुई
मासूमियत में थी जो रात खोई
में चांद का न हुआ चांदनी मेरी ना हुई।
बन न सका पर कोशिश पूरी की
मैं कामयाब न हुआ कामयाबी मेरी ना हुई
ढूंढता रहा पर वो छुपी ही रही
में खुश ना हुआ खुशी मेरी ना हुई।
संभाल के रखना था वोह चाबी खो गई
मैं सुकून का न हुआ तसल्ली मेरी ना हुई
अफसोस ही हैं मेरे पास अभी
आखिर मजबूर हुआ और मजबूरी मेरी हो गई।
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