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ख्वाहीशें कुछ ऐसी जो पूरी न हुई
मैं तकदीर का न हुआ तकदीर मेरी ना हुई
यह किस अनजान की जी रहा हूं ज़िंदगी
जिसका मैं न हुआ उसकी हस्ती मेरी ना हुई।
चाहत मिली नही वोह रूठी हुई
मैं प्यार का न हुआ प्यारी मेरी ना हुई
मासूमियत में थी जो रात खोई
में चांद का न हुआ चांदनी मेरी ना हुई।<
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