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मेरे घर सुर्ख अख़बार आता है,
खून से लतपत,
उसका हर सफ़हा भीगा रहता है लहू से,
सफ़हे पलटते-पलटते मेरे हाथों पर सुर्ख रंग चढ़ जाता है,
हजार बार धोने पर भी नहीं उतरता।
इस कदर चढ़े रहते है, गिला-ओ-शिकवे,
कभी निंदा करता है किसी की तो कभी ताने देता है,
रोजनामा
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