
अंधेरा छाया रहता है आँखों पर,
नींद नहीं आती, क्या करूँ पलकों को बंद कर,
तकदीर ने काली पोत रखी है, आँखों पर।
दुनिया कहती हैं,
आँखों के इशारे सब कुछ बयाँ कर देते हैं
पर न मैं आँखों से बात कर सकता हूँ,
न समझा सकता हूँ।
तुम कहते हो की आज सूरज बड़े जोश में है,
पर जब किरणें मेरे बदन पर पड़ती हैं,
और जिस्म जलता है, तब समझ आता है,
सूरज जोश में है और मैं देख नहीं सकता।
तुम लोगों को देख कर परख लेते हो,
पर मुझे थोड़ा समय लगता है,
मैं देख नहीं सकता पर सुन कर समझ लेता हूँ।
तुम बातें करते हो की दुनिया रंग-बिरंगी है,
लेकिन सारे रंग मेरी आँखों में आकर सिमट चुके हैं।
तुम कहते हो वो कितना कुसलुम लगता है,
मैं देख सकता तो कहता मेरे बाबा जैसा लगता हैं।
मैंने न तो मेरे बाबा को देखा है न माँ को देखा है।
पर जब भी दोनों मेरे आस पास होते हैं तो अपने आंचल में बाँधे रखते हैं।
मेरा एक अच्छा सा नाम है,
पर दुनिया मुझे अंधा बुलाती है,
खैर, देख नहीं सकता मैं, न अच्छा न बुरा।
न किसी को जलते, न किसी को रोते, न हँसते।
तुम भी खुली आँखों से सारी चीजें नहीं देख सकते,
पर मैं खुली आँखों से भी अंधेरा देख सकता हूँ।
तुम देख कर सब कुछ समझ सकते हो पर मेरे दर्द को नहीं,
मैं बिन देखें भी इस ज़िंदगी भर के अंधेरे को समझ सकता हूँ।
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