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अमीरों के लिए "मौसम".....

महज़ बदला हुआ वातावरण I

क्यूँकि, पास मनचाहे संसाधन उपकरण II


ग़रीबों के लिए "मौसम".....

तपता हुआ बदन, 

टपकती हुई छत, 

अध-ढके जिस्म की सिहरन ठिठुरन I

मुसलसल जद्द-ओ-जहद

जूझने ज़िंदा रहने की,

और बे-कफ़न मरण II


कितना असंतुलित ! 

जीवन का यह शाश्वत समीकरण I


         - अभिषेक

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