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जिस रोज़ ....
न रहेगा
कोई पेट खाली
हर भूखे की
भरी होगी थाली
होगी न जब
नफ़रत दिलों में
और लबों पे
आएगी न गाली
सड़कों पे जब
न लहू बहेगा
न पत्थर चलेगा
न सर फूटेगा
त्योहार मनेंगे जब
बिन पाबंदी
और भीड़ न होगी
आक्रोश वाली
उस रोज़ ....
होगा ऐसा आभास
हो जैसे
नूतन वर्ष का आग़ाज़
गुड़ गजक में
होगी ज़्यादा मिठास
सद्भाव की डोर से
बँधेगी पतंग
ख़ुशियों के फ़लक पर
लेगी परवाज़
गुलाल कर देगा
कुछ ऐसा कमाल
खिलेंगे एक से
सबके मुखड़े गाल
भईया, भाईजान,
पा जी, ब्रदर
मन की पिचकारी में
भर के प्रेम-रंग
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