
जिस रोज़ ....
न रहेगा
कोई पेट खाली
हर भूखे की
भरी होगी थाली
होगी न जब
नफ़रत दिलों में
और लबों पे
आएगी न गाली
सड़कों पे जब
न लहू बहेगा
न पत्थर चलेगा
न सर फूटेगा
त्योहार मनेंगे जब
बिन पाबंदी
और भीड़ न होगी
आक्रोश वाली
उस रोज़ ....
होगा ऐसा आभास
हो जैसे
नूतन वर्ष का आग़ाज़
गुड़ गजक में
होगी ज़्यादा मिठास
सद्भाव की डोर से
बँधेगी पतंग
ख़ुशियों के फ़लक पर
लेगी परवाज़
गुलाल कर देगा
कुछ ऐसा कमाल
खिलेंगे एक से
सबके मुखड़े गाल
भईया, भाईजान,
पा जी, ब्रदर
मन की पिचकारी में
भर के प्रेम-रंग
साथ नाचेंगे, गाएंगे
करेंगे मस्ती हुरदंग
सारे मज़हबों की
दिखेगी ऐसी संगत
और भी पक्की होगी
होली की रंगत
हर घर में बनेंगी
मीठी सिवईंयां
करेंगे ईद मुबारक़
गा गा कर कव्वाली
जागरण माँ भवानी का
सब मिल कर करेंगे
गूँजेगा हर दिल में
जयकारा शेरावाली
नफ़रत का रावण मरेगा
प्रेम का ही दीप जलेगा
ऐसी अनोखी होगी दिवाली
तट, घाटों पर आएंगे
सर्व धर्मों के सज्जन
सौहार्दपूर्ण मनेगा छठ पूजन
दिसंबर 25 ही नहीं,
साल का हर दिवस
लगेगा जैसे, मेरी क्रिसमस
और सबके जीवन का
फिर तो हर दिन
सच में होगा "बड़ा दिन"
- अभिषेक
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