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हालातों की ठोकरें खा कर
घायल हो जाता है
जब कोई विचार
और तड़पता रहता है
ज़ेहन के व्यस्त रस्ते पर
तो इससे पहले कि,
तोड़ न दे दम कहीं !
उसे कलम के ऐम्बुलेंस से
भावनाओं के अस्पताल ले जाकर
काग़ज़ों के बिस्तर पे
सुला देता हूँ
और हौले हौले से
लफ़्ज़ों की चादर
ओढ़ा देता हूँ
- अभिषेक
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