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टूट गया ना तेरा भ्रम !
क्या हुई मुक़म्मल आरज़ू !
"समझेंगे, मुझको समझने वाले"
अक्सर यही कहता था तू
अरे नादाँ ! ज़रा संभल
हक़ीक़त से हो रू-ब-रू
होती है झूठे ख़्
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टूट गया ना तेरा भ्रम !
क्या हुई मुक़म्मल आरज़ू !
"समझेंगे, मुझको समझने वाले"
अक्सर यही कहता था तू
अरे नादाँ ! ज़रा संभल
हक़ीक़त से हो रू-ब-रू
होती है झूठे ख़्
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