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उम्मीदों से कहाँ कुछ हो पाता है
होता वही, जो चाहता विधाता है
हँसाने वाला भी इक रोज़ रुलाता है
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उम्मीदों से कहाँ कुछ हो पाता है
होता वही, जो चाहता विधाता है
हँसाने वाला भी इक रोज़ रुलाता है
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