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जा चुकी हो मीलों दूर कहीं छोड़कर हमे लेकिन आज भी तू इस दिल के पास है
थाम लिया है गैरों का गैरों का हाथ तुमने, लेकिन इन वाहों को आज भी तेरा एहसास है।
वक़्त-वेवक्त न जाने क्यों बैठा रहता हूँ उन जगहों पर जहां हम दोनों शामें गुजार दिया करते थे
जी रही है तू अपनी ज़िंदगी हमें भुलाकर कहीं और , लेकिन तेरी हर यादें आज भी मेरे साथ है।।
~ रवि कान्त कुड़ेरिया ~
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