लहरें ये झूठ की
हर बार ही कोशिश करती
सच के किनारों पे ही जा गिरती,
साजिश हर बात पे और साँसों में भी लिपटी
है थोड़ी सी सहमी पर खुद को ‘सच’ ही कहती,
स्याह और काली सी
हर दिल में अब जो बसती
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