वो काला लड़का!'s image
Share0 Bookmarks 301 Reads1 Likes
घर के आँगन में कुछ बच्चे खेल रहे थे। मैं भी उन्हें खेलते हुए देख रही थी। उनमें से एक बच्चे का नाम मुझे पता नहीं था, इसलिए मैंने दूसरे बच्चों से उसका नाम पूछ लिया तो वे तपाक से बोल उठे "अच्छा, वो काला लड़का, उसका नाम तो 'अनन्त' है।"
काला लड़का! 
मुझे सुनकर अच्छा नहीं लगा। आज के समय में बच्चों द्वारा किसी बच्चे की पहचान इस तरह से बताया जाना मुझे काफी अचंभित कर गया। मैंने उन बच्चों को टोका भी, कि ऐसा नहीं बोलते। लेकिन उन्होंने मेरी बात को हँसकर अनसुना कर दिया।
मुझे नहीं पता कि उस बच्चे को ये शब्द सुनकर कैसा लगा होगा, हो सकता है कि अगले ही पल वो सबकुछ भूलकर खेलने में व्यस्त हो गया हो। लेकिन उन बच्चों द्वारा उसे बोले गए वो शब्द मुझे काफी चुभे। फिर मुझे विचार आया कि ये कोई नई या अचंभित होने वाली बात नहीं है। आज भी हमारे समाज में काला, मोटा या भद्दा, जैसे शब्द बड़ी ही आसानी से किसी को भी बोल दिए जाते हैं, वो भी ये सोचे-समझे बिना कि सामने वाले को कैसा लगेगा। आजकल ये शब्द इतने आम हो गए है कि, कभी-कभी तो मैं भी किसी व्यक्ति की पहचान उसके असली नाम से नहीं बल्कि इन अशिष्ट विशेषणों से बताती हूँ। 
हमारे समाज में कुछ शब्दों के गलत प्रयोग इतने अधिक प्रचलन में है कि अब ये हमारी सामान्य बोलचाल की भाषा का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैंं और हम भी बड़े सहज ढंग से कभी हँसी-मजाक में, तो कभी व्यंग्यात्मक लहजे में इन शब्दों का प्रयोग करते ही चले जा रहे है। 
मुझे इन शब्दों से कोई नफरत नहीं है, नफरत है तो बस उन लोगों से जो इन शब्दों का प्रयोग गलत वक्त पर, गलत जगह पर, गलत तरीके से करते हैं। आप नहीं जानते कि आपके द्वारा बोले गए ऐसे शब्द किस हद तक बच्चे के मन पर असर कर जाते हैं, आपकी एक नकारात्मक टिप्पणी से वो 'काला' को सिर्फ काला नहीं बल्कि 'कुरूप' भी समझने लगता है, 'मोटे' को सिर्फ मोटा नहीं बल्कि 'बेडौल' भी समझने लगता है। बच्चे के कोमल मन में शब्दों के ऐसे गलत अर्थों का संचार, और हीनभावना जैसे नकारात्मक विचार पैदा करने के लिए आपके कहे ये कुछ शब्द ही काफी होते है। फिर भले ही आप बाद में उसे बड़े होने पर रंगभेद के भेद बतलाए या काले-गोरे का फर्क समझाए, उसे इन सब बातों से कहीं ज़्यादा फर्क उस बात से पड़ेगा जो वो बचपन से सुनता आ रहा है। 
यदि देखा जाए तो, हरेक शब्द अपने आप में असीम सुंदरता लिए होता है, बस ज़रूरत है तो उसे सही जगह पर, सही समय पर, सही तरीके से इस्तेमाल करने की। मेरी आपसे विनती है कि, अगर आप अपने बच्चों के सामने इन शब्दों का प्रयोग सही जगह पर, सही रूप में नहीं कर सकते तो कम से कम गलत जगह पर, गलत रूप में भी मत करिए, क्योंकि कहीं न कहीं वो ऐसी अशिष्टता आपसे ही सीख रहा है। अपने बच्चों को शब्दों का सही और सुंदर प्रयोग सिखाइए ताकि वो सुंदरता की असल परिभाषा से परिचित हो सके और आगे जाकर अपनी आने वाली पीढ़ी तक भी उन शब्दों का हस्तांतरण सही व सुंदर रूप में कर सके।

धन्यवाद!

रक्षा पण्ड्या

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts