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तेरी बातें है किसी मीठे से जादू की तरह
जो आ लगी है मेरे सीने में चाकू की तरह
मेरी आँखों ने जब से दरिया को पहचाना है
गिरा रही हैं तब से आँसू को आँसू की तरह
तू मेरे सामने है गर जो हक़ीक़त बनकर
दिखा था रात में फिर कौन वो जुगनू की तरह
ये मुझपे किसने गुलाबों की तरह ज़ुल्म किया
मेरे हाथों में कौन महका है खुश्बू की तरह
तेरी नई अदा ने ढीठ बनाया मुझको
अब सिकुड़ती नहीं अबरू भी अबरू की तरह
दुनिया के सभी ज़ोर-ओ-सितम अब मैं भी
उठा रहा हूँ किसी बाप के बाज़ू की तरह
– रजनीश्वर चौहान 'रजनीश'
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