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दर्जा ए हरारत अचानक बढ़ गया है,
सर्दी चली गई गर्मी आ गई है,
मौसम ए बहार जाने किधर गया है,
खिलने से भी पहले हर फूल बिखर गया है,
तरक्की के रास्ते दुनिया चल पड़ी है,
है आलूदगी का आलम इन्सान मर रहा है,
खिजां पड़ रही है भारी बाकी सब मौसमों पर,
वीरान रास्ते हैं सूखे पत्ते उड़ रहे हैं,
मौसम ए बहार जाने किधर गया है।
- राजीव ' हैरान '
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