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मिट्टी की खुशबू की
बात ही कुछ निराली है
हमारा बचपन क्या खूब था
जब हम मिट्टी के घरौंदे बनाते थे
जिसे हम फूल पत्तों और
मिट्टी के दीयों से ही सजाते थे
फिर भी हम सब
बहुत खुश हो जाते थे।
मिट्टी में पौधे लगाते थे
मिट्टी में खेल हम असली खुशी पाते हैं
और आज...
कहीं मिट्टी ना लग जाए पैरों में
ये सोचकर पैर उठाते हैं।
जलो या दफन हो सबका आधार में ही हूँ
मिट्टी हमारी जन्मदात्री , अन्न्दात्री, मुक्तदात्री है
हमारा आदी भी अंत भी
जड़ भी चेतन भी
मिट्टी शून्य भी और अनंत भी
फूलो में शाखों में तने में, वृक्ष में
सबका अस्तित मिट्टी है।
मिट्टी हम सब की माँ
वतन की याद दिलाती
हम सबको गले लगती
मिट्टी की खुशबू की
बात ही कुछ निराली है
जो हमे हमारा बचपन याद दिलाती है
-रोहन जोशी
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