वक़्त और हम's image
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वक़्त बड़ी बेहरहमी से आजमाता है आज

कौन कौन से कसूर फिर बताता है "राज"

उनके दामन पे एक दाग भी नज़र नही आता

हमारी सादगी को भी मैला बताता है आज 


भीड़ का चेहरा अक्सर ही एक रंग देखा है 

सच को अकेले कही खड़ा देखा है आज 

कुछ इल्ज़ाम सर पर ले लेना तुम "राज"

बेगुनाही के सबूत तुम कहाँ ढूंढोगे आज 


दरिया है मतलब की रिश्तो के दरमियाँ 

बरसती है जो आँखों से बेमतलब है आज

किस को यहाँ हमनवा बताये हम यहाँ पर

हालात पे टिके देखे है रिश्तो को आज 


भरोसे पर अक्सर यहाँ चोट खाई है हमने 

करीब जाने से किसी के घबराते है "राज"

समय का खेल है परेशानी से क्या हासिल 

सवाल उनसे भी होगा जो मुश्कराते है आज 


खुद से ही खुद का यहाँ रहनुमा बन जा 

कहाँ कोई अब रस्ता बताता है आज 

उलझनों में उलझे तो खुद से मिल पाए

किसी से दिल कहाँ कोई लगता है आज 


उम्मीद और हौशला कभी कम न करना 

न जाने कब बदल जाये जो हालात है आज

कुछ पेचीदगी जीने को बख्शी है मालिक ने

वरना लोग भूल जाते उसको भी "राज" ....


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