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दूब की नोक पर
ओस की बूंद थी
जो इधर से उधर
कांपती, डोलती
झूलती, झूमती
मुस्कराती रही ।
भोर होने को थी
स्धच्छ आकाश की
लालिमा बढ़ चली
फिर किरण सूर्य की
बूंद पर आ पड़ी
श्वेत मोती बनी
झिलमिला
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