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लोकतंत्र के नाम पर
सरकारें सिर्फ गड्ढे खोदती रहीं
बाद में आई सरकारें उन गड्ढों को
भरती रहीं।
देश की आज़ादी के बाद
सिर्फ यही काम होता रहा।
पुराने गड्ढों को भरने के उपक्रम में
नये गड्ढे खुदते रहे।
इन गड्ढों को खोदने
फिर भरने का औचित्य समझ से परे है।
क्या इसी के लिए
लोग इतने वर्षों तक
बलिदान हुए और मरे हैं?
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