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कर में मदिरा पात्र नहीं पर
मन में मादकता छाई।
नैनों से मदिरा छलकाती
जब तुम पास कहीं आई।
सार्वजनिक जगहों पर पीना मना
सभी ने बतलाया।
किन्तु अकेलेपन में आकर
जाम ये किसने पिलवाया?
जग है सुन्दर क्यारी जैसा
तरह-तरह के पुष्प खिले।
मन को भाता दृश्य मनोहर
इसे देखकर मन मचले।
पाप पुण्य की सीमाएं हैं
मन सदैव निस्सीम रहा।
दुनिया के गोरखध॔धों में
रह कर अलग,अलीन रहा।
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