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Kumar VishwasPoetry1 min read

एक दीवार सा हो गया हूं

Rabindra Kumar BhartiRabindra Kumar Bharti February 12, 2023
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एक दीवार सा हो गया हूं

न कोई रोशनदान है

न कोई दरवाज़ा है

कुछ बोल नहीं सकता

अब केवल सुनता हूं

और अक्सर सोचता हूं

आख़िर ऐसा क्यों है?

आख़िर कैसे हुआ ये सब?

हर अश्क सीलन बन

सफ़ेद लिबास में

छाती से लिपटे रहते हैं

बेबसी की दास्तान बयां करते

मगर कोई नहीं सुनता

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