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वे यादें माँ की –
अन्तर्मन में उठती रहतीं
जाड़े की ओ रातें,
भुलाये नहीं भूलतीं
माँ की सांसें –
मेरी सासों से मिलती रहतीं
चक्की चलती रहती...
घरर-घरर चलती रहती–
आँटे की चक्की...
जाँते की सुमधुर ध्वनि में–
माँ की वह मीठी-मीठी लोरी!
उसकी गोदी में सोये-सोये
तकता रहता था माँ के मुख को
दीये की टिम-टिम जलती बत्ती की लौ में
हँसता रहता, रोने भी लगता
माँ चुप रखने को गीत सुनाती, गाती रहती,
पाषाणों की चक्की से भी–
कितनी सुन्दर दर्दभरी वे ध्वनिया
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