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एक हैं हम नेक हैं हम–
मृदुल है झंकार! अपनी
उषः हो या हो निशा
हम करेंगे अमृत वर्षण!
एक गंगा , एक हिम है
एक ही धरती गगन है
एक ही उद्गम है अपना
एक ही ईश्वर हमारा।
बात को हम जानते हैं
तथ्य को पहचानते हैं
फिर,हम'विष'धारण क्यूँ करते?
क्यों न मिलकर साथ चलते?
हम गहेंगे भाव सुन्दर!
त्याग देंगे भाव कलुषित!
चल पड़ेंगे साथ मिलकर
जोड़ देंगे व्यथित जन-मन!
सृजन ही अपना इरादा
मिलन पर कोई न बाधा
पार करके दुःसह तम
निर्मित करेंगे राष्ट्र सुन्दर!!
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