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घृणा क्रोध विध्वंस द्रोह
स्वार्थों की लोलुपता!
सद्वृत्तियों का ह्रास व
अधिकारों की लिप्सा!!
मानव इनमें फँसकर–
अपना ही सबकुछ
खोता रहता है
इसीलिए तो विश्व–
भयंकर! दुःख–
सहता रहता है।
ऐसे शब्दों को –
हम क्यों अपनाते?
ये ही हैं वे शब्द जो–
आदमखोरी दर्शाते।
अपनाएं हम प्रेम- दया- करुणा,
माया-ममता व सहानुभूति!
जो सच्चे मानव-मन की अनुभूति!!
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