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देखता हूँ रोज-रोज!
दूर….नदी किनारे–
एक पत्थर!
उसपर बैठे हुए–
एक लड़के को…
अपलक निहारता रहता है
नदी को, घण्टों…
रह-रहकर एक कंकड़–
फेंकता जाता है पर, नदी में नहीं
अपने पीछे।
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देखता हूँ रोज-रोज!
दूर….नदी किनारे–
एक पत्थर!
उसपर बैठे हुए–
एक लड़के को…
अपलक निहारता रहता है
नदी को, घण्टों…
रह-रहकर एक कंकड़–
फेंकता जाता है पर, नदी में नहीं
अपने पीछे।
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