और नींव हिल गई !'s image
Poetry2 min read

और नींव हिल गई !

R N ShuklaR N Shukla May 22, 2023
Share0 Bookmarks 238 Reads1 Likes
एक-एक ईंट रखी थी 
बड़े ही सलीके से !
न जाने कैसी चली बयार !
और , नींव ! हिल गई !

सींचा था 'माँ' ने 
हसरतों से घर-आँगन को , 
न जाने कैसी बरसी आग !
और , अरमां ही जल गए !

आँगन के पूर्वोत्तर कोने में , 
लगाए थे माँ ने ,
तुलसी का एक होनहार बिरवा !
साँझ-बाती करती थी प्रतिदिन !
ना  जाने  कैसी आयी वो बला !
कुम्भला गया तुलसी का बिरवा !
झुलस गईं  ! हरी पत्तियां !
कांप उठा ! माँ का हृदय !
अनिष्ट  की  आशंका से ।

द्वार की देहरी पर –
जलाती थी नित दीप !
सभी रहें  सलामत !
बने रहें खुशनसीब !
दरकी दीवार ! 
खिसकी  ईंट  !
बिखर गया घर-आँगन !
टूट गया मां का दिल !

तिनका-तिनका जोड़कर ,
बनाया था सुंदर घर !
न जाने किसकी लगी नजर !
और  , बिखर....गया....घर !

भाई ने कहा - भाई से ,
और माँ ? 

माँ,सुन रही थी उनकी बातें !
भला, कलेजे को कैसे बांटे ?

कलेजा कांपा !
सिहर उठा वजूद !
घूमा ! मां  का  सिर !
हिल उठा समूचा ब्रह्मांड !
घूम गई धरती, धँस गई धरा !
थर्रा उठा आकाश ! 

और–
क्षण-भर भी तो नहीं लगा ,
फट  गया  मस्तिष्क !
और  माँ ! धड़ाम !
चली गई माँ !
अनंत की यात्रा पर ...

शेष रह गया , पार्थिव शरीर !
प्रतीक्षा में हैं अब भी –
दो डबडबाई-उभरी आंखें !
कि , बच्चे ! घर , ना  बांटें !!

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts