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रे आतंक के वंशज!
यहाँ से भाग जा तू
क्रूरतम इतिहास तेरा
मत भ्रमितकर विश्व को अब
छोड़ दे तू क्रूरतम पथ!
कर्म हैं तेरे घृणित
सभ्यता होती कलंकित!
स्त्रियोंका करताअपहरण!
लूटता तू उनकी अस्मत!!
क्रूर है ऐसा कि तू सिर काटता है
काटकर सिर,फिर लहू को चाटता है
इंसान औ' इंसानियत का शत्रु है तू
देखने में भी महा ही धूर्त है तू।
घाव पर तू घाव देता जा रहा है
जुल्म पर तू जुल्म ढ़ाता जारहा है
मानवको पशुओं की तरह तू काटता है
पाप पर तू पाप करता जा रहा है।
छोड़ दे आतंक का पथ
त्याग दे तू जुल्म करना
अक्षम्य हैं अपराध तेरे!
अफसोस है व रोष है कि–
मूक हो दुनिया तमाशा बन गई है!
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