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रे आतंक के वंशज!
यहाँ से भाग जा तू
क्रूरतम इतिहास तेरा
मत भ्रमितकर विश्व को अब
छोड़ दे तू क्रूरतम पथ!
कर्म हैं तेरे घृणित
सभ्यता होती कलंकित!
स्त्रियोंका करताअपहरण!
लूटता तू उनकी अस्मत!!
क्रूर है ऐसा कि तू सिर काटता है
काटकर सिर,फिर लहू को चाटता है
इंसान औ' इंसानियत क
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