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जिंदगी...
ये जो जिंदगी है साहब….
धरती नाम की पटरी पर दौड़ती रेलगाड़ी हैं साहब
जिसका अराइवल स्टेशन पहले आता है और departure बाद में
कितना ना समझ है ये इंसा
स्टेशन को समझ लेता है मकां
ए नादां इंसा तू चार किताबें पढ़कर
तू क्या ख़ाक समझ लेता है
Hahaha
चंद समान और सिक्कों को दौलत समझ लेता है
चिल्लरौ से ख़रीदी हैं जो
कुछ बची कुची सासें
उसको ताउम्र की मोहलत समझ लेता हैं
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