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तुम्हारे लिए गीत लिखूं, शायरी कहूं
या कोई गज़ल गाऊं मैं
बोलो तो, तुम्हें कैसे मनाऊं मैं...
तुम्हारी तस्वीर बनाऊं, तुम्हारे लिए फूल लाऊं
या बहारें सजाऊं मैं
बोलो तो, तुम्हें कैसे मनाऊं मैं...
तुम्हारी तारीफ करूं, तुम्हें डांटू
या तुम्हें समझाऊं मैं
बोलो तो, तुम्हें कैसे मनाऊं मैं...
तुम्हारी उदासी बांटू, तुम्हारे संग खिलखिलाऊं
या बिल्कुल ही चुप्प हो जाऊं मैं
बोलो तो, तुम्हें कैसे मनाऊं मैं...
चुपके-से आकर तुम्हारा हाथ थामूं, तुम्हें गले लगाऊं
या तुमसे दूर हो जाऊं मैं
बोलो तो, तुम्हें कैसे मनाऊं मैं...?
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