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ऐसा क्या था उस बाग़ में जो इस बाग़ नहीं था
इधर क्या रंग नहीं थे, महक नहीं थी, ग़ुलाब नहीं था।
चलो मान लिया कि हसीं है वो मुझसे लेकिन
इधर क्या जलवे नहीं थे, हया नहीं थी, शबाब नहीं था।
बड़े शौक से उस शहर में बना लिया आशियाँ तुमने
इधर क्या यार नहीं थ
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